हर
देश के नागरिकों में एक राष्ट्रीय स्वाभिमान तो होना ही चाहिए, विशेष कर तब जब राष्ट्र के पास एक अत्यंत समृद्ध सांस्कृतिक
विरासत हो. भारत जैसी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत कम देशों के पास है. ‘इंडिया –व्हाट
कैन आईटी तीच अस’ में विख्यात जर्मन विद्वान् मैक्समुलर कहते हैं, जो मुख्य रूप से
पुराने भारत को लक्ष्य कर कहे गए हैं -
‘‘अगर सारी दुनिया में सभी प्रकार
की समृद्धियों, शक्तियों
और सुन्दरता से युक्त कोई देश है, यह मुझे बताना पड़े, तो मैं भारत की और इशारा करूँगा
: भारत, जिसके कई हिस्सों को तो प्रकृति ने स्वर्ग जैसा सुन्दर बनाया है। अगर मुझसे
कोई पूछे कि किस आसमान के नीचे मानवीय मस्तिष्क ने अपनी कुछ सबसे चुनिंदा शक्तियों
को पूरी तरह विकसित किया है, जहाँ
जीवन की महत्तम समस्याओं और प्रश्नों पर सबसे गम्भीर चिंतन-मनन किया गया है,
और
उन समस्याओं के ऐसे निदान निकाले गये हैं जिन पर प्लैटो और कांट के अध्येताओं को भी
ध्यान देने की जरूरत है, तो
मैं फिर भारत की ओर ऊँगली दिखाऊँगा। और अगर
मुझे अपने से पूछना हो कि किस साहित्य से हमें,
जिन्हें
यहाँ यूरोप में यूनानी और रोमन तथा केवल एक नस्ल - यहूदी - विचारों द्वारा पोषित किया
गया है, संशोधनात्मक निदान मिल सकते हैं,
जिनसे हमारे आन्तरिक जीवन को अधिक पूर्णता,
अधिक
विस्तार, अधिक सर्वभौमता और अधिक सच्चे
रूप से मानवीयता प्राप्त हो सके - न केवल इस जीवन के लिए बल्कि अनन्त जीवन के लिए -
तो मैं फिर भारत की ओर इंगित करूँगा।’.
आइये, अपने
राष्ट्रीय स्वाभिमान को विकसित करने के लिए हम आज से ही दो छोटे-छोटे कदम उठाएं –
देशी
भाषाओँ में अभिवादन कर्रें – हम आपस में ‘गुड मोर्निंग’, ‘गुड ईवनिंग’ के बदले
नमस्कार, जोहार, आदाब, राम-राम, सुप्रभात, शुभ संख्या आदि का प्रयोग करें. उदाहरण
के लिए -
सुबह मिलें
तो ‘सुप्रभात’, शाम को मिलें तो ‘शुभ
संध्या’ कह सकते हैं.
विदा लेते
वक्त, यदि दिन हो तो ‘शुभ दिन’ कहें और शाम हो तो ‘शुभ रात्रि’ कह सकत्ते हैं.
देशी
पोशाकें गर्व से पहनें – पारम्परिक
देशी पोशाकें, जैसे कुरता, पैजामा, धोती, उतनी ही सहजता से पहनें जीतनी सहजता से
आधुनिक पाश्चिमी पोशाकें जैसे शर्ट-पतलून आदि पहनते हैं.
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