(The Concept of Integral Revolution)
व्यक्ति का जीवन और लोक-जीवन दोनों ही एक शरीर की तरह हुआ करते हैं, जिनके एक अंग या पहलू का प्रभाव दूसरे अंग या पहलू पर कामो-बेश पडता ही है. एक अंग में हुई गम्भीर बीमारी तो कभी-कभी पूरे शरीर को नष्ट कर देती है. कैंसर अगर एक अंग में हो जाये, और उसका उचित उपचार न हो, तो सारे शरीर में फ़ैल कर उसे नष्ट कर देती है. आज राजनीति में भ्रष्टाचार का कैंसर केवल लोक-जीवन के एक अंग, राजनीति, को नष्ट नहीं कर रहा है, बल्कि लोक-जीवन के सभी अन्य अंगों को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. चूँकि मंत्रियों में भ्रष्टाचार है इस लिये अफसरशाहों में भी भ्रष्टाचार है. आखिर उन्हीं के सहयोग से तो मंत्री भ्रष्टाचार करते हैं. जब अफसरशाह भ्रष्ट होंगे तो उनके सभी अधीनस्थ छोटे अधिकारी और कर्मचारी भी भ्रष्टाचार के लिये स्वतंत्र होंगे ही. किसी बड़े अधिकारी को उनके भ्रष्टाचार को रोकने का नैतिक बल कहाँ होगा? इसका परिणाम वही होगा जो आज हो रहा है. गरीबी जाने का नाम नहीं लेती. किसान भूखे मर रहे हैं, और मजदूर खून के आँसू रो रहे हैं. जन-सामान्य पेशो-पेश में है.
मगर सारा दोष राजनीति को देना उचित नहीं होगा. अगर शिक्षा उचित होती और बच्चों को उचित संस्कार दिये गए होते, तो बड़े हो कर हर राजनीतिज्ञ भ्रष्ट ही नही होता, अधिकांश अफसर भ्रष्ट नहीं होते. धर्म और धर्म-गुरु जो लोक जीवन पर इतना गहरा प्रभाव रखते रहे हैं, अपने भक्तों को भ्रष्टाचार के लिये मना नहीं करते. क्या यह उनका नैतिक भ्रष्टाचार नहीं है? ईश्वर और देवताओं की ऐसी छवि बनाना कि वे भी चढावे ले कर गलत- सही, उचित-अनुचित का विवेक ताक पर रख अपने भक्तों को धन-दौलत और पद-शोहरत दिया करते हैं, क्या भ्रष्टाचार नहीं है? क्या यह बात जनता को और धर्म-गुरुओं को राजनीतिज्ञोंने सिखाई? नहीं! अर्थात दोष सिर्फ राजनीति का नहीं है. हमारे धर्म और हमारी संस्कृति भी में भी कहीं ना कहीं खोट है. शिक्षा-पद्धति में भी कहीं-न-कहीं समस्याएं हैं.
कला और साहित्य सभ्यता के प्राचीनतम प्रतिमानों में से हैं. आज उनकी क्या दशा है देश में? देश के एक बड़े साहित्यकार का नाम ले सकते हैं आप? एक बड़े कवि का नाम जानते हैं आप? राजनीति ने माहौल जरूर खराब किया है, मगर सांस्कृतिक पुनरुत्थान की भी सारी जिमेदारी राजनीतिज्ञ पर ही है क्या ? सामजिक और सांस्कृतिक नेतृत्व कहाँ सोया रहा हमारा?
संक्षेप में यह कि हमें लोक-जीवन को इतना खंड-खंड बाँट कर नहीं देखना है. राजनीतिज्ञों और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोक-शक्ति आज उठ रही है, संगठित हो रही है. यह एक शुभ लक्षण है. मगर इस लोक-जागरण को हमें विस्तार देना है. समाज के हर वर्ग को और हर पीढ़ी को इस पनपती हुई क्रान्ति में समेटना है, और समग्र क्रान्ति की ओर मोडना है. हर गाँव में जीवन को उसके सम्पूर्णता में समेकित कर विकसित करना है – समेकित और सामग्र क्रांति करनी है! व्यक्ति के जीवन में भी यही सामाग्र क्रान्ति और सम्पूर्ण निर्माण हमें करना है. इस समेकित क्रांति और सम्पूर्ण निर्माण की रूप रेखा हमें धीरे-धीरे स्पष्ट रूप से समझनी पड़ेगी, और इसमें अपनी भूमिका ढूंढनी पड़ेगी.
आइये इस प्रयास में हम जुड़ें. जुड़ने का पहला तरीका होगा इस संवाद से जुड़ना. समग्र क्रान्ति मंच से जुड़ना.
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